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Bhagya Mandir

ईश्वर सत्य जगह मिथ्या जीवो न परा:

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About guruji

आज के समय मे प्रत्येक मानव केवल अपने स्वार्थ के विषय मे लगा रहता है और उसका जीवन केवल संसार की भौतिकता में ही लीन रहता है । भौतिक संसार की वास्तविकता यह है उसके सभी ऐश और आराम क्षणिक होते है जबकि अध्यात्म का कोई आदि और अंत नही है जो भी मनुष्य अध्यात्म को अपने जीवन मे ले आता है वह जीवन वास्तविकता को समझ जाता है और उसे पता हो जाता है भौतिक संसार और इसकी भौतिक वस्तुयों में रहना गलत नही है लेकिन यदि भौतिकता आपको नियंत्रित करने लगे तो आप यह समझ लीजिए आपका चित्त भौतिकता के आवरण से घिरा हुआ है । परंतु कुछ मनुष्य संसार की वास्तविकता को जान जाते है और उन्हें यह ज्ञान हो जाता है कि संसार मे सब प्रकार की भौतिक वस्तुएं , भावनाएं और प्राणी मिथ्या है । वेदांत दर्शन में कहा भी गया है कि ईश्वर सत्य जगह मिथ्या जीवो न परा: ऐसे ही विशाल हृदय और पावन चित्त को धारण करने वाले है हमारे परम् पूज्य श्रद्धये श्री सौरभ गुरुजी जी । गुरुजी के बारे में वर्णन करने के लिए शब्दकोष से शब्दों का चयन करना लगभग असंभव कार्य है । गुरुजी का बचपन साधारण बालकों जैसा ही परन्तु गुरुजी के माता जी और पिता जी दिव्या आत्मा है और गुरुजी को सभी प्रकार संस्कारो की शिक्षा देना का प्रयास उनके माता जी और पिता जी द्वारा किया गया । गुरुजी ने एक समृद्ध परिवार की संतान होने पश्चात भी आरम्भ से आत्मनिर्भर बनने का प्रयास किया । गुरुजी आरम्भ से अन्य बालकों से अलग व्यवहार करते थे वह प्रत्येक विषय के बारे में बहुत गूढ़ता से सोचते थे उस पर चिंतन करते थे और अनेक विद्वानों से मिलकर उनसे अलग अलग विषयो पर तर्क- वितर्क करते थे । जैसे जैसे गुरुजी अपने जीवन मे आगे बढ़ते गए वैसे वैसे उनकी रुचि अध्यात्म और योग में और बढ़ने लगी ।

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गुरुजी अपने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन मे बहुत अच्छे सामंजस्य बनाये हुए थे । अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने काफी धन और संपत्ति एकत्र की परंतु एक समय के उपरांत गुरुजी को यह संसार मिथ्या लगने लगा और उनका मन संसार की भौतिकता से अलग होने लगा । कुछ समय के उपरांत गुरुजी अपना सब धन और संपत्ति त्यागकर अज्ञतावास के लिए निकल गए । 6 वर्षो तक कठिन परिश्रम , ध्यान , योगभ्यास और चक्रभेदन साधना करने गुरुजी अंदर पराभौतिक शक्तियाँ आ गयी जिससे कि वह भूत और भविष्य को जानने वाले हो गए । गुरुजी अपनी योग की साधना का सदुपयोग जनसामान्य के कल्याण के लिए करना चाहते थे । इसलिए तब से लेकर आज तक गुरुजी लगातार लोगो की समस्यों को सुनते है और उन्हें उचित मार्गदर्शन देते है । एक औसत दिन में गुरुजी लगभग 200 से 350 श्रद्धालुओं से बात करते है । भारत के हर राज्य से लगभग हर जिले से हर गांव से श्रद्धालु गुरुजी का मार्गदर्शन प्राप्त करते है । भारत ही अपितु जर्मनी, अमेरिका , इंग्लैंड , ऑस्ट्रेलिया और कुवैत जैसे 47 देशों से भी श्रद्धालु ऑनलाइन माध्यमों से गुरुजी से जुड़े हुए है । प्रतिदिन 2-3 घंटे गुरुजी विदेश में लोग की समस्यों को सुनते है और उन्हें मार्गदर्शन देते है । समस्या चाहे भौतिक हो या पराभौतिक गुरुजी के मार्गदर्शन से उसका समाधान अवश्य होता है । शिक्षा , पारिवारिक समस्या , आर्थिक समस्या , निसंतान और अन्य सभी प्रकार की समस्याओं में गुरुजी का मार्गदर्शन लोगो को प्राप्त होता है । गुरुजी ने समाज कल्याण और जनसामान्य की समस्याओं के हल को ही अपने जीवन का यह लक्ष्य बनाया है। वह प्रतिदिन अपने समय का अधिकांश भाग जनकल्याण के कार्यों में लगाते है । गुरुजी के संरक्षण में ही भाग्य मंदिर परिवार का निर्माण किया गया । उनके मार्गदर्शन से ही भाग्य मंदिर परिवार शिक्षा , चिकित्सा और अन्नदान से संबंधित विभिन्न्न कार्य कर रही है ।