गुरुजी अपने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन मे बहुत अच्छे सामंजस्य बनाये हुए थे । अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने काफी धन और संपत्ति एकत्र की परंतु एक समय के उपरांत गुरुजी को यह संसार मिथ्या लगने लगा और उनका मन संसार की भौतिकता से अलग होने लगा । कुछ समय के उपरांत गुरुजी अपना सब धन और संपत्ति त्यागकर अज्ञतावास के लिए निकल गए । 6 वर्षो तक कठिन परिश्रम , ध्यान , योगभ्यास और चक्रभेदन साधना करने गुरुजी अंदर पराभौतिक शक्तियाँ आ गयी जिससे कि वह भूत और भविष्य को जानने वाले हो गए । गुरुजी अपनी योग की साधना का सदुपयोग जनसामान्य के कल्याण के लिए करना चाहते थे ।
इसलिए तब से लेकर आज तक गुरुजी लगातार लोगो की समस्यों को सुनते है और उन्हें उचित मार्गदर्शन देते है । एक औसत दिन में गुरुजी लगभग 200 से 350 श्रद्धालुओं से बात करते है । भारत के हर राज्य से लगभग हर जिले से हर गांव से श्रद्धालु गुरुजी का मार्गदर्शन प्राप्त करते है ।
भारत ही अपितु जर्मनी, अमेरिका , इंग्लैंड , ऑस्ट्रेलिया और कुवैत जैसे 47 देशों से भी श्रद्धालु ऑनलाइन माध्यमों से गुरुजी से जुड़े हुए है ।
प्रतिदिन 2-3 घंटे गुरुजी विदेश में लोग की समस्यों को सुनते है और उन्हें मार्गदर्शन देते है ।
समस्या चाहे भौतिक हो या पराभौतिक गुरुजी के मार्गदर्शन से उसका समाधान अवश्य होता है ।
शिक्षा , पारिवारिक समस्या , आर्थिक समस्या , निसंतान और अन्य सभी प्रकार की समस्याओं में गुरुजी का मार्गदर्शन लोगो को प्राप्त होता है ।
गुरुजी ने समाज कल्याण और जनसामान्य की समस्याओं के हल को ही अपने जीवन का यह लक्ष्य बनाया है। वह प्रतिदिन अपने समय का अधिकांश भाग जनकल्याण के कार्यों में लगाते है ।
गुरुजी के संरक्षण में ही भाग्य मंदिर परिवार का निर्माण किया गया । उनके मार्गदर्शन से ही भाग्य मंदिर परिवार शिक्षा , चिकित्सा और अन्नदान से संबंधित विभिन्न्न कार्य कर रही है ।